50 करोड़ की फीस, 300 का टिकट… क्या पवन कल्याण की ‘वीरा मल्लू’ वाकई लायक है इतना शोर?

पवन कल्याण वापस आ गए हैं—तलवारें लहराते हुए, आंखों में बगावत लिए। लेकिन सवाल ये है: क्या ‘हरी हरा वीरा मल्लू’ सिर्फ एक फिल्म है या कोई बड़ा सियासी खेल?

कहीं फैंस सीटियाँ बजा रहे हैं, तो कहीं जनता जेब खाली होने पर गुस्से में है। एक तरफ स्टारडम की चमक, दूसरी तरफ टिकट प्राइस का जख्म।
चलो, सब कुछ खोल के देखते हैं।

पहली तलवार और तालियों का शोर – लेकिन फिर क्या हुआ?

पवन कल्याण फिल्म में हैं वीरा मल्लू, एक बागी डकैत जो मुगलों के खिलाफ खड़ा होता है। एंट्री सीन में जैसे ही वो स्क्रीन पर आते हैं—धूल उड़ती है, घोड़ा दौड़ता है, तलवार चमकती है और थिएटर में सीटियाँ गूंज उठती हैं।

निधि अग्रवाल और नर्गिस फाखरी ग्लैमर लाते हैं। सोनाक्षी सिन्हा भी असर छोड़ती हैं।
लेकिन सेकेंड हाफ आते-आते फिल्म की रफ्तार लड़खड़ा जाती है। स्क्रिप्ट कमजोर हो जाती है, और दर्शक मोबाइल देखने लगते हैं।

पहले दिन का बॉक्स ऑफिस – धुआंधार ओपनिंग, लेकिन…

Times of India के मुताबिक, फिल्म ने पहले दिन साउथ में हाउसफुल की रिपोर्ट दी। फर्स्ट शो के बाहर लंबी लाइनें थीं, पोस्टर्स पर दूध चढ़ाया गया। लेकिन… ये जोश पूरे दिन नहीं टिका।

शाम के शो में सोशल मीडिया पर #Overhyped और #DisappointedFan ट्रेंड करने लगा।

ट्रेड पंडितों की मानें तो फिल्म का बजट बहुत बड़ा है। उसे हिट होने के लिए सिर्फ पहले दिन नहीं, पूरे हफ्ते आग लगानी होगी। वरना स्टारडम भी बचा नहीं पाएगा।

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पवन कल्याण की फीस – आधी फिल्म का बजट उन्हीं पर?

Hindustan Times ने एक रिपोर्ट में दावा किया कि पवन कल्याण की फीस 50 करोड़ से ज्यादा है। हालांकि एक प्रेस मीट में पवन ने कहा,
“पैसे से ज्यादा ये फिल्म मेरी आत्मा से जुड़ी है।”

पर जनता पूछ रही है – “अगर आत्मा से जुड़ी है, तो फीस भी आत्मा वाली लेते?”

DYFI का हमला – “ये फिल्म है या VIP टिकट स्कीम?”

The Hindu की रिपोर्ट में बताया गया कि DYFI (Democratic Youth Federation of India) ने टिकट के रेट्स बढ़ने पर खुलकर विरोध किया।

DYFI नेता बोले:
“गरीब आदमी फिल्म देखने जाए, और टिकट 300 रुपये? ये जनता से धोखा है।”

अब सोशल मीडिया पर भी लोग पूछ रहे हैं—
“क्या सिर्फ पावर स्टार के लिए नियम बदल जाएंगे?”
“एक फिल्म के लिए कानून तोड़ना सही है क्या?”

पॉलिटिक्स की हवा या सिनेमा का जादू?

चुनाव नज़दीक हैं। पवन कल्याण खुद पॉलिटिक्स में हैं। ऐसे में फिल्म का टाइमिंग, ग्रैंड रिलीज़, और सोशल मीडिया प्लानिंग देख कर कई लोग कह रहे हैं—“ये फिल्म नहीं, चुनावी रिहर्सल है।”

तो देखे या छोड़ दे? आपका फैसला

अगर आप पवन के कट्टर फैन हो, तो ये फिल्म आपके लिए भक्ति है। लेकिन अगर आप कहानी में दम, डायरेक्शन में कसावट, और सिनेमा में सच्चाई ढूंढते हो—तो थोड़ा सोच समझकर टिकट लेना।

आख़िरी सवाल – क्या वीरा मल्लू रील लाइफ हीरो है या रियल पोलिटिकल प्लेयर?

ये फिल्म सिर्फ सिनेमाघर की कहानी नहीं है। इसमें ग्लैमर है, गुस्सा है, और एक बड़ा पॉलिटिकल सबटेक्स्ट है।
अब देखना ये है कि जनता इसे ब्लॉकबस्टर बनाती है या ब्लंडर

आपने फिल्म देखी? अपना रिव्यू नीचे कॉमेंट में लिखो – ‘पावर’ दिखा या सिर्फ ‘प्रचार’?

Pooja Singh writes for desidose.in, moving easily between lifestyle, sport, travel and whatever is trending that day. She turns the week’s noise into clear, lively stories you actually want to read.